मन की मन: स्तिथि खुद ही उलझती सुलझती रहती है
जो रख दी बातें सामने अपनों के, मन का बोझ कर हल्का
वो स्वछंद फिरा करती है।
जो बातें रह गई दबी मन में, मन को व्याकुल कर सदा
वो तनाव पैदा करती है।।
उलझनें हो लाख चाहे, न दिख रही हो राह कोई सामने
उस वक्त ही तो मन पर कस के लगाम लगानी पड़ती है।
जो पा लिया काबू उस दौर पे, सुलझ जाएगी उलझनें सारी
गर्त से बाहर आयेगा बस संयम की ज्योति जगानी पड़ती है।।
@अरुण पांडेय
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